रिश्ते की डोर: Vrriti Sharma

आज सुबह नींद से जागी तो,
हाथ में एक रिश्ते का सिरा
मुट्ठी में पकड़ा पाया |
और दुसरा सिरा यूँही अकेला,
चुपचाप ज़मीन पर पड़ा था |
जाकर उठाया उसे, तो किसी के
हाथों की गरमायिश महसूस की.
शायद कोई बस कुछ ही देर हुई,
छोड़ उसे वहाँ, आज़ाद हो चला था |
फिर अपने हाथ की तरफ़ देख,
सोचने लगी, की, क्या मैं भी इसे
यही छोड आज़ाद हो निकलूँ ?
पर तभी कानों में हंसी के ठहाके,
दो लोगों की प्यार भरी बातें,
न जाने कितने वादे, सब गूंज
उठे | मैं हैरान, परेशान सोच में
थी और सोच में ही रह गयी |
क्या पता शायद कभी वो लोट
आये, और मैं ना मिली तो |
या शायद वो ना भी आये,
और मेरा इन्तज़ार, इन्तज़ार
ही बन कर रैह गया तो ?
क्या उसने सोचा होगा इस
रिश्ते की डोर से आज़ाद होने
से पहले, पर गर सोचा होता
तो क्यों कहाँ नहीं मुझसे
या शायद ना भी सोचा हो |
इसी उधेड़बुन में खड़ी मैं,
बस दोनों सिरों को देखती
रही | फिर सोचा एक रिश्ते
को तन्हा नहीं चलाया जाता,
तो क्या ये ख़त्म हुआ ?
क्यों बना था ये, गर यूँही
ख़त्म होना था इसे |
इस क्यों, क्या और कैसे
के सैंकड़ों सवाल और
कोई जवाब नहीं | परेशान हो
मैंने अपने हाथ का सिरा छोड़ना
चाहा, और भाग जाना चाहती थी
उन सवालों से | पर, ये क्या
वो सिरा तो छूट ही नहीं रहा |
जैसे मेरी हथेली में जड़ दिया
हो किसी ने लकीरों की तरह |
ये देख हंस पड़ी मैं और उसे
और कस कर पकड़ दुसरा
सिरा भी उठा वहीं तन्हा
बैठ उन्हें देखती रही...
Vrriti Sharma is a humanitarian by profession and a poet and singer by heart. She believes that the little vacuum of our lives should be filled with beautiful poetry and music. Her work can be viewed at Rhetorical Journey.